आपका मन–आपका मित्र या शत्रु
आपका मन आपका मित्र या शत्रु ?
जैसे नदी के प्रवाह को रोका नहीं जा सकता लेकिन उसे नहर बना कर मोड़ा जा सकता है इस से नदी के जल के तीव्र वेग से होने वाली हानि से भी बचा जा सकता है और उस जल का (सिचाई आदि में) सार्थक प्रयोग भी किया जा सकता है
इसी प्रकार आपके मन का भी एक प्रवाह है। मन का प्रवाह होती है 'कामना' ये कामना ही व्यक्ति को जीवन भर दौडती है उसे कभी शांत नहीं होने देती, ये कामना ही व्यक्ति से हर प्रकार के गलत कार्य करा लेती है, ये कामना ही मनुष्यता का अंत करा देती है और अंत में व्यक्ति को पतित कर देती है यहां तक की कितनी ही बार व्यक्ति के प्राण ले लेती है
लेकिन ये कामना मनुष्य को इस प्रकार विवश कर कैसे देती है?
कैसे एक व्यक्ति कामना के वेग में अंधा होकर अपना हित अहित भी नहीं देख पाता ?
(इसका भी कारण है)
बुद्धिमानों के इस शाश्वत शत्रु द्वारा ज्ञान को ढक दिया जाता है। हे कुन्तीपुत्र, इच्छारूप और अग्नि से, जिसे भरना कठिन है
(अवृतम् ज्ञानमेतेन) इस इच्छा में जल एक ऐसी शक्ति है। की यह ज्ञान को हर लेती है जब व्यक्ति काम के प्रभाव में होता है उस क्षण वह कुछ भी कर सकता है वह परिणाम का विचार भी नहीं करेगा, कारण कामना ने ज्ञान को ढक लिया...
(दुष्पूरेणानलेन च।।) यानी यह भी नहीं समझना चाहिए कि जिस वस्तु की कामना है उसे प्राप्त कर के हम मन को शांत कर देते हैं नहीं ऐसा हो नहीं सकता, भगवान कहते हैं की जैसे आग में घी डालने से आग और बढ़ती हैं इसी प्रकार एक कामना की पूर्ति कर देने पर ये कामना और बढ़ती हैं
इसीलिए हे बुद्धिमानों, यह इच्छा ही नित्य शत्रु है क्योंकि ज्ञानी को पता है की जहां कामना उत्पन्न हुई तो अब कुछ ना कुछ आफत अवश्य आयेगी
इसलिए ज्ञानी इस कामना के प्रति अत्यंत सावधानी रखता है और वह सावधानी से करता यह है
जिस प्रकार हमने आरंभ में ही कहा की नदी के जल को दिशा दे लें तो यही जल बड़ा उपयोगी और मंगल करने वाला भी हो जाएगा
ऐसे ही ज्ञानी निरंतर मन पर दृष्टि रखता है और अपने को मन से अलग समझ कर गंभीरता से इसकी चाल को समझता है
और जहां यह गलत चला तुरंत अनेक साधनों से इस मन पर अंकुश लगता है ज्ञानी जिन साधनों का प्रयोग करता है वे साथन ही नदी से नहर बना कर जल को नियंत्रित करने की तरह कामना के वेग को समाप्त कर देते हैं
जानी के परम मंगल करने वाले साधन इन प्रकार हैं/
स्वाध्याय, चिंतन, साधना, योग, ध्यान, मंत्र, सेवा, संकप, समर्पण, सात्संग, दैन्यता, वितराग महापुरुषों को आदर्श बना कर उनके आचरण का अनुसरण आदि...
यदि इन साधनों का उचित प्रयोग किया जाए तो निश्चित रूप से मन की कुमार्गगामी वृत्तियों पर नियंत्रण कर के मन को अपना हितेषी बनाया जा सकता है
आपसे भी हमारा यही आग्रह है कि हमे समय रहते सजग हो जाना है
इन साधनों का प्रयोग कर इस अमूल्य जीवन को सार्थक बनाना है
हमे कामी नहीं ज्ञानी बनना है हमे भोगी नहीं योगी बनना है।
Varsha_Upadhyay
12-Jun-2024 08:37 PM
Nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
11-Jun-2024 07:01 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति
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Raziya bano
10-Jun-2024 11:04 PM
Bahut hi sunder rachana di
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